विनोद खन्ना और अमिताभ बच्चन ने फिल्मों में अपना सफर 1960 के दशक के अंत में शुरू किया। दोनों एक्टर्स को एक दूसरे का कॉम्पटीटर माना जाता था। यह दौर हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना का था और हर कोई मानता था कि उनके लेवल का कोई नहीं है जो उन्हें टक्कर दे सके। लेकिन, फिर समय बदला और जैसे-जैसे नया दशक आया,काका की पॉपुलैरिटी में गिरावट आने लगी। ये वो दौर था जब विनोद खन्ना और अमिताभ चमके।
उस वक्त अमिताभ बच्चन इंडस्ट्री में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहे थे। उनकी कई एक फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फेल हो रही थीं। बिग बी ने एंग्री यंग मैन अवतार के साथ साल 1973 में जंजीर से कमबैक किया। उसी समय साथ-साथ एक और स्टार तैयार हो रहा था और वो थे विनोद खन्ना। कई फिल्मों में सपोर्टिंग रोल निभाने के बाद गुलजार की फिल्म मेरे अपने में विनोद लीड रोल में नजर आए और फिल्म हिट हो गई।
एक तरफ जहां मेरा गांव मेरा देश, पूरब और पश्चिम, सच्चा झूठा और राजेश खन्ना की आन मिलो सजना जैसी फिल्मों में उन्हें खलनायक के तौर पर पसंद किया जाने लगा तब तक अमिताभ बच्चन, जंजीर और नमक हराम जैसी हिट फिल्मों के साथ दौड़ में बहुत आगे निकल चुके थे। विनोद को लीड एक्टर रोल्स की दरकार थी।
साल 1975 में बीआर चोपड़ा की फिल्म जमीर में अमिताभ और विनोद खन्ना के बीच का कॉम्पटीशन स्क्रीन पर भी नजर आने लगा। इसके बाद साल 1976 में फिल्म हेरा फेरी में प्रकाश मेहरा ने उन्हें साथ में कास्ट किया। हालांकि ये कास्टिंग इतनी सरल नहीं थी। रिपोर्ट्स बताती हैं कि प्रकाश मेहरा अमिताभ के साथ फिरोज खान को कास्ट करना चाहते थे लेकिन फिरोज ने रविवार को काम करने से मना कर दिया जिसके बाद ये रोल विनोद खन्ना के पास चला गया। विनोद खन्ना ने डायरेक्टर के सामने दो शर्ते रखीं।
विनोद खन्ना का कहना था कि उन्हें अमिताभ बच्चन के बराबर फुटेज मिलनी चाहिए और एक्टर ने अमिताभ बच्चन से एक लाख रुपये अधिक की पेमेंट मांगी। उनकी दोनों ही शर्ते मान ली गईं। इस फिल्म के लिए अमिताभ को डेढ़ लाख जबकि विनोद खन्ना को ढ़ाई लाख रुपये मिले थे। फिल्म जब पर्दे पर रिलीज हुई तो सुपरहिट साबित हुई और अमिताभ और विनोद खन्ना की जोड़ी हिट हो गई।