अमृत रत्न सम्मान समारोह में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के पॉपुलर सिंगर उदिय नारायण ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों को याद किया. उदित नारायण ने बताया कि उन्हें बचपन से ही गाने का शौक था. वह मेलों में भी गाने गाया करते थे. इसके बाद उन्होंने काठमांडू रेडियो स्टेशन में काम किया. फिर वह सिंगिंग की दुनिया में नाम कमाने के लिए मुंबई पहुंच गए.
उदित नारायण ने बताया कि वह 45 सालों से बॉलीवुड और म्यूजिक की दुनिया में काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं सुपौल के एक छोटे से गांव में रहा हूं. मैंने मेलों में भी गाना गाया है. मैं अपनी बहन के घर जाकर रहने लगा था. मेरी बहन ने मेरी बहुत मदद की और मैं मेलों में गाने गाकर थोड़े-बहुत पैसे कमा लेता था. वहां रहकर मैंने मैट्रिक की पढ़ाई भी की.’
सिंगर ने आगे बताया, ‘इसके बाद मैंने एक मंत्री के घर में गाना गाया. उन्हें मेरा गाना बहुत पसंद आया. उन्होंने मुझे 100 रुपये देकर काठमांडू जाने के लिए कहा. तीन दिनों का सफर करने के बाद मैं रेडियो स्टेशन काठमांडू पहुंचा. मुझे वहां पर 100 रुपये की सैलरी पर नौकरी मिल गई थी. वहां पर मैं गाने गाया करता था.’
उदित नारायण ने आगे बताया कि वह इंडियन दूतावास में भी परफॉर्म करते थे, जहां से उन्हें म्यूजिक सीखने के लिए स्कॉलरशिप मिल गई. इसके बाद मुंबई पहुंच गए. वहां पर उन्होंने म्यूजिक की ट्रेनिंग ली. मुंबई में कई सालों तक उनका स्ट्र्गल चलता रहा. म्यूजिक सीखने के साथ-साथ वह स्टूडियोज के चक्कर काटते थे कि किसी फिल्म में उन्हें गाने का मौका मिल जाए. म्यूजिक कंपोजर राजेश रोशन ने उन्हें पहला ब्रेक दिया था.’
ब्रेक मिलने के बाद भी उदित नारायण का स्ट्रगल चलता रहा. कई फिल्मों में सिर्फ दो या फिर चार लाइनें गाने के लिए मिलती थीं. इसके बाद, उन्होंने आमिर खान की फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ मिल गई और उनकी किस्मत चमक उठी. उन्होंने ‘ऐ मेरे हमफसर’ और ‘अकेले हैं तो क्या गम है’ जैसे गाने गाए, जो सुपरहिट हुए. इसके बाद उदित नारायण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.