फिल्म करण अर्जुन आपने जरूर देखी होगी वैसे भी यह फिल्म टीवी पर अक्सर आती ही रहती है और यह एक बेहद शानदार फिल्म भी है इस फिल्म में ठाकुर दुर्जन सिंह का मुंशी याद है ना जी हां वही मुंशी जो पूरी फिल्म में बोलता रहता है ठाकुर तो गियो इनका नाम है अशोक सराफ और पिछले पांच दशकों से यह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी कॉमेडी से दर्शकों का मनोरंजन कर रहे हैं।
अशोक सर्राफ का जन्म 4 जून 1947 को दक्षिण मुंबई में हु हुआ था इनके पिता इंपोर्ट एक्सपोर्ट का बिजनेस किया करते थे अशोक शराफ जब बड़े हुए तो इनके पिता ने इनसे कहा कि अपनी पढ़ाई पूरी करो और जल्दी से कोई अच्छी नौकरी पकड़ लो लेकिन इनके पिता नहीं जानते थे कि इनका बेटा नौकरी करने के लिए तो पैदा ही नहीं हुआ वह तो बचपन से ही अभिनय की दुनिया का सरताज बनना चाहता है हालांकि अशोक अपने पिता की उम्मीदों और ख्वाइशों को भी नहीं तोड़ना चाहते थे सो उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी करनी शुरू कर दी अगले 10 सालों तक यह अपनी इसी नौकरी में जमे रहे लेकिन एक्टिंग के अपने शौक को इन्होंने मरने नहीं दिया।
नौकरी के साथ ही यह नाटकों में भी हिस्सा लेते रहे इनके करियर का पहला नाटक महान मराठी लेखक विष्णु सखा राम खांडेकर की किताब याया पर आधारित था उस नाटक में यह विदूषक यानी जोकर बने थे।
उस वक्त तो खुद अशोक सर्राफ भी नहीं जानते होंगे कि आगे चलकर लोग इनकी कॉमेडी के लिए ही इन्हें अपनी पलकों पर बिठाए नाटकों में अशोक सर्राफ ने बड़ा ही जबरदस्त काम किया जाहिर है कुछ ही दिनों में फिल्म बनाने वालों ने भी इन्हें अप्रोच करना शुरू कर दिया मराठी सिनेमा के एक बड़े डायरेक्टर थे जिनका नाम था गजानंद जागीरदार उन्होंने अपनी एक फिल्म में अशोक सर्राफ को एक छोटे से रोल में लिया यह रोल इतना छोटा था कि इससे ना तो अशोक को किसी तरह की कोई लोकप्रियता मिली और ना ही कुछ खास पैसे मिले लेकिन एक फायदा अशोक को जरूर हुआ और वह यह कि अशोक सराफ की सिल्वर स्क्रीन पर एंट्री जरूर हो गई।
यह फिल्म 1971 में रिलीज हुई थी अशोक सराफ इसके बाद 4 सालों तक फिल्मों में काम करते रहे और एक सफलता का इंतजार करते रहे फिर 1975 में रिलीज हुई पांडू हवलदार नाम की फिल्म जो कि इनकी सफलता की सीढ़ी बन गई यह फिल्म एक आइकॉनिक मराठी फिल्म है और इसमें दादा कोंडके जैसे बड़े मराठी अभिनेता ने भी काम किया है इसी फिल्म के साथ ही सही मायनों में इनके करियर की गाड़ी चल निकली मराठी फिल्म इंडस्ट्री में यह इतना बड़ा नाम बन गए कि इनके सामने किसी और के नाम का जिक्र किया ही नहीं जा सकता।
सिवाय एक नाम के लक्ष्य यानी लक्ष्मीकांत बेड़े उस दौर में इन दोनों कलाकारों ने मराठी सिनेमा को अपने बूते आगे बढ़ाया था लक्ष्मीकांत बेड़े संग इनकी जोड़ी खूब जमी इन दोनों कलाकारों की जोड़ी ने दर्शकों को खूब हंसाया और यह भी बताया कि बिना भद्दे और अश्लील इशारों के भी दर्शकों को हंसाया जा सकता है इस बात से शायद ही सिनेमा का कोई जानकार इंकार कर पाए कि 80 से लेकर 90 के बीच में मराठी सिनेमा को अशोक सर्राफ और लक्ष्मीकांत ने अपने दम पर जिंदा रखा जबकि इस दौर में मराठी सीने इंडस्ट्री बेहद खस्ता हाल थी लेकिन अपने टैलेंट के दम पर यह दो कलाकार इन 10 सालों तक मराठी सिनेमा पर राज करते रहे उस वक्त यह तय था कि किसी फिल्म में अगर यह दो कलाकार हैं तो वह फिल्म सुपरहिट है अशोक सराफ मराठी अभिनेत्री रंजना की जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया कहा जाता है कि जिस तरह हिंदी सिनेमा में शाहरुख काजोल की जोड़ी पर दर्शकों ने प्यार लुटाया ठीक वैसा ही प्यार मराठी सिनेमा के दर्शकों ने इन दोनों की जोड़ी पर लुटाया यह भी अपने आप में एक बड़ी बात मानी जाती है कि अशोक सराफ की पहचान एक कॉमेडी कलाकार की होने के बावजूद रंजना और इनकी जोड़ी को मराठी सिनेमा की सबसे रोमांटिक जोड़ियों में से एक माना जाता है और केवल रंजना के साथ ही नहीं निबो दिता जोशी के साथ भी दर्शकों ने अशोक सराफ की जोड़ी को पसंद किया।
निवेदिता के साथ काम करने में इनका दिल कुछ यूं रमा कि इन्हें निवेदिता से इश्क हो गया और फिर साल 1990 में दोनों ने शादी भी कर ली इन दोनों ने शादी की थी गोवा के श्री मंगेश मंदिर में दरअसल अशोक सराफ के परिवार की जड़े गुआ के इसी इलाके से जुड़ी है जहां श्री मंगेश मंदिर मौजूद है इस जोड़ी का एक बेटा भी है जिनका नाम अनिकेत है हालांकि इनका बेटा इनकी तरह एक्टर नहीं बना बल्कि उसने खुद के लिए शेफ का करियर चुना अशोक सराफ के हिंदी फिल्मों के करियर पर नजर डाले तो इन्होंने काम तो इस फिल्म इंडस्ट्री में बड़ा शानदार किया लेकिन हिंदी सिनेमा में इनकी प्रतिभा को वह तजी कभी नहीं मिली जो मराठी सिनेमा में इन्हें मिली हिंदी सिनेमा में अशोक की प्रतिभा को छोटे-मोटे कॉमेडी रोल्स के दायरे में ही समेट दिया गया।
लेकिन फिर भी अशोक सराफ ने हिंदी सिनेमा में मिले हर मौके पर यह जरूर साबित किया कि वह एक बेहद दमदार अभिनेता है यही वजह है कि हिंदी सिनेमा में भी अशोक सराफ के कई किरदार ऐसे हैं जो सिनेमा के इतिहास में हमेशा यादगार रहेंगे करण अर्जुन के मुंशी और उनके डायलॉग ठाकुर तो गियो को भला कौन भूल सकता है यस बॉस फिल्म में शाहरुख खान के दोस्त का किरदार भला किसे पसंद नहीं आया होगा सिंघ का हेड कांस्टेबल का किरदार कौन कमा आक सकता है या फिर जोरू के गुलाम में गोविंदा के मामा के किरदार पर कौन हंसा नहीं होगा।
अशोक सराफ के अभिनय का जलवा छोटे पर्दे पर भी खूब चला सन 1995 में दूरदर्शन पर आने वाले टीवी शो हम पांच में अशोक सराफ की कॉमेडी को लोग बड़ा पसंद करते थे पांच बेटियों के पिता मिस्टर माथुर की जिंदगी की उथल-पुथल को इस शो में अशोक ने बड़े ही कॉमिक अंदाज में पेश किया सहारा टीवी पर आने वाला सी सीरियल डोंट वरी हो जाएगा में भी अशोक सराफ की अभिनय कुशलता का शानदार नमूना पेश किया गया यह शो भी खूब लोगों ने पसंद किया और इस शो को इनकी पत्नी निवेदिता जोशी सराफ ने ही प्रोड्यूस किया था।