सिंगर बनने के सपने के साथ खाली जेब लिए घर से भागे, लेकिन किस्मत ने बना दिया एक्टर।

रघुवीर यादव के घर वाले चाहते थे कि ये पढ़ लिखकर कोई बढ़िया सी नौकरी कर ले और इसलिए जबरन इनके पिता ने इन्हें साइंस में दाखिला दिलाया घरवालों का मानना था कि अगर लड़का साइंस से पढ़ेगा तो अच्छी नौकरी से मिलेगी अच्छी लड़की भी मिल जाएगी लेकिन रघुवीर ठहरे सीधा-साधा बच्चा एक ऐसा बच्चा जिसे पिता के साथ खेती करना अच्छा लगता था बैल गाड़ी चलाने में मजा आता था इसलिए साइंस कभी रघुवीर यादव को समझ में ही नहीं आई नतीजा यह हुआ कि यह एग्जाम्स में फेल हो गए इन्हें खुद पर इतनी शर्म आई कि यह घर वालों से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा सके और आखिरकार यह घर से भाग गए उस वक्त रघुवीर यादव की उम्र महज 15 साल ही थी।

रघुवीर अकेले नहीं भागे थे गांव का एक लड़का भी इनके साथ था रघुवीर उस लड़के के साथ ललितपुर पहुंचे ललितपुर में उस लड़के के रिश्तेदार रहते थे रघुवीर भी वहीं रहे इत्तफाक से उन्हीं दिनों ललितपुर में एक पारसी थिएटर कंपनी के शोज चल रहे थे रघुवीर यादव ने भी ढाई रप का टिकट लेकर एक नाटक वहां देखा दो चार दिन बाद वह लड़का अपने रिश्तेदारों के घर से भी गायब हो गया ऐसे में रघुवीर यादव को भी वहां से निकलना पड़ा रघुवीर यादव को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह कहां जाएंगे आखिरकार वह अपना बैग उठाकर उसी पारसी थिएटर कंपनी में पहुंच गए।

वहां जाकर रघुवीर उसके मालिक से मिले और काम मांगा उन्होंने रघुवीर से पूछा कि तुम क्या कर सकते हो अब चूंकि बचपन से ही रघुवीर यादव को गाना बहुत अच्छा लगता था और इनके मन के किसी कोने में गायक बनने की ख्वाहिश भी थी तो रघुवीर यादव ने उनसे कहा कि मैं गाना गा लेता हूं उन्हों ने रघुवीर से कोई गाना सुनाने को कहा रघुवीर ने एक गाना सुनाया भी व गाना सुनने के बाद थिएटर कंपनी के मालिक इनसे बोले कि भाई तुम गाते तो अच्छा हो लेकिन तुम्हारा तलफ्फुज बहुत ज्यादा खराब है रघुवीर को लगा कि तलफ्फुज तबले से जुड़ी कोई चीज होगी वह बोले अगर मैं तबले पर गाऊंगा तो सही गा लूंगा।

रघुवीर की आवाज सुनकर थिएटर कंपनी के मालिक और दूसरे लोग जो वहां बैठे थे उनकी हंसी छूट गई रघुवीर को एहसास हो गया कि उन्होंने कोई बेवकूफ बात कह दी है थिएटर मालिक ने उन्हें बताया कि तलफ्फुज का मतलब उच्चारण होता है रघुवीर ने थिएटर कंपनी के मालिक से गुजारिश की कि मुझे काम पर रख लीजिए मैं पूरी मेहनत से काम करूंगा मालिक ने रघुवीर पर तरस खाकर ढाई रुपए रोज के हिसाब से इन्हें काम पर रख लिया रघुवीर वहां रहकर उनके शोज में गाना गाने लगे थिएटर के लोगों ने ही रघुवीर को उर्दू भी सिखाई और इनका उच्चारण सही कराया रघुवीर उस कंपनी के नाटकों में गाने का काम करते थे कई दफा ऐसा होता था जब शो कैंसल हो जाता था या बारिश हो जाती थी ऐसे में रघुवीर का मेहता ढाई रुपए से घटकर एक रुपए कभी कभार तो मात्र 50 पैसा ही रह जाता था।

रघुवीर कहते हैं कि वह बड़ी मुश्किल वाले दिन थे खाने की भी कमी रहती थी नाटक कंपनी में इनके साथ काम करने वाले स्टाफ के कई लोग कमजोर और पीले पड़ जाते थे लेकिन रघुवीर हमेशा एनर्जेटिक रहते क्योंकि व खुश रहते थे वो खुश रहते थे यह सोचकर कि हर दिन उन्हें कुछ नया सीखने को मिल रहा है खैर तकरीबन दो-तीन महीनों तक रघुवीर यादव उस नाटक कंपनी में गाने का काम करते रहे।

फिर एक दिन कंपनी के मालिक ने इनसे कहा कि अब तुम्हें सिर्फ गाना बजाना ही नहीं करना अब तुम्हें स्टेज पर एक्टिंग भी करनी होगी रघुवीर चाहते तो नहीं थे लेकिन मालिक का हुक्म टाल भी नहीं सकते थे और इसलिए इन्होंने हामी भर दी पहले नाटक में रघुवीर यादव को सिपाही का किरदार दिया गया एक ऐसा सिपाही जो हाथ में भाला लिए बस एक कोने में खड़ा रहता है।

रघुवीर को सिपाही बनकर पूरे नाटक के दौरान एक कोने में खड़ा रहना जरा भी पसंद नहीं आया अगले शो में जब रघुवीर यादव को फिर से सिपाही बनने के लिए कहा गया तो इन्होंने इंकार कर दिया इन्होंने कहा कि मुझे वह काम अच्छा नहीं लगता लेकिन थिएटर के मालिक ने इनसे कहा कि अगर तुम यह काम नहीं करोगे तो तुम्हें कंपनी छोड़नी पड़ेगी मजबूरी में रघुवीर यादव को फिर से सिपाही बनना पड़ा कुछ दिनों तक यह दुखी रहे मगर जब अगले नाटकों में इन्हें थोड़े डायलॉग्स वाले किरदार दिए गए तो इन्हें भी एक्टिंग करने में मजा आने लगा और अगले सालों तक यह उस पारसी थिएटर कंपनी के साथ काम करते रहे पारसी थिएटर कंपनी छोड़ने के बाद रघुवीर यादव लखनऊ आ गए फिर वहीं से किसी ने इन्हें एनएसडी के बारे में बताया रघुवीर यादव ने प्रयास किया और इन्हें एनएसडी में दाखिला मिल गया फिर तो बाकायदा इन्होंने प्रोफेशनल थिएटर की विधिवत ट्रेनिंग ली एनएसडी से पास होने के बाद कुछ समय तक इन्होंने वहां की रेपी में नौकरी भी की जब रघुवीर यादव एनएसजी के स्टूडेंट ही थे तब इन्हें और इनके कुछ बैचमेट्स को पुणे स्थित एफटीआईआई में एक स्पेशल ट्रेनिंग के लिए भेजा गया।

पुणे में भी रघुवीर यादव ने एक नाटक किया जिसे इत्तफाक से दिग्गज डायरेक्टर सईद मिर्जा ने देख लिया सईद मिर्जा रघुवीर यादव से बड़ा प्रभावित हुए उन्होंने रघुवीर यादव से कहा कि तुम बॉम्बे आ जाओ मैं एक फिल्म बना रहा हूं उसमें तुम्हें लूंगा तुम्हारे रहने खाने का बंदोबस्त मैं कर दूंगा रघुवीर यादव ने उस समय तो उनसे कहा कि मैं सोचकर जवाब दूंगा लेकिन यह मन ही मन तय कर चुके थे कि इन्हें फिल्मों में काम नहीं करना इन्हें तो बस थिएटर करना है फिर डायरेक्टर प्रदीप कृष्ण ने रघुवीर यादव को मेसी साहब की स्क्रिप्ट पढ़ने को दी तो इन्हें वह कहानी बहुत पसंद आई खास तौर पर मेसी साहब का मुख्य किरदार फ्रांसिस प्रदीप कृष्ण चाहते भी थे कि फ्रांसिस मेसी का किरदार रघुवीर से ही कराया जाए रघुवीर यादव मेसी साहब में काम करने को तैयार हो गए लेकिन इस शर्त पर कि वह एनएसडी के रेपी की अपनी नौकरी नहीं छोड़ेंगे प्रदीप कृष्ण तैयार हो गए और एनएसडी से ब्रेक लेकर रघुवीर यादव ने मैसी साह फिल्म की शूटिंग की फिल्म जब रिलीज हुई तो रघुवीर यादव के काम की चारों तरफ प्रशंसा हुई दो इंटरनेशनल अवार्ड्स इनकी झोली में आ गए।

फिर तो रघुवीर यादव के पास फिल्मों के ऑफर्स की झड़ी लग गई हालांकि इन्होंने काफी वक्त तक खुद को मिले सभी ऑफर्स ठुकराए फिर कुछ दिनों के बाद यह मुंबई आ गए मुंबई आने के बाद रघुवीर यादव ने सलाम बॉम्बे फिल्म में काम किया और इसके बाद तो रघुवीर यादव एक के बाद एक कई फिल्मों में काम करते चले गए वहीं दूसरी तरफ रघुवीर यादव की हाल ही में पंचायत सीरीज ने लोगों का दिल मोह लिया पंचायत में रघुवीर यादव का सरपंच वाला किरदार लोगों को इतना पसंद आया कि लोग इनके अदाकारी के कायल हो गए।

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