दोस्तों फिल्मी सितारों की जीवनी में आज हम एक और दमदार अदाकारा की जीवनी लेकर आए हैं जिसने अपने अभिनय से दर्शकों को काफी रोमांचित किया और काफी मुश्किलों के बाद भी हार ना मानते हुए खुद को एक ऐसी अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया जो मरने के बाद भी फिल्मी दुनिया में अमर हो गई।
जी हां दोस्तों हम बात कर रहे हैं रामानंद सागर की टीवी धारावाहिक रामायण में मंथरा का रोल निभाने वाली अभिनेत्री ललिता पवार के बारे में वह भारतीय सिनेमा की एक ऐसी अदाकारा थी जिन्होंने अपनी अद्भुत अभिनय कला से ना केवल सिनेमा जगत में बल्कि दर्शकों के दिलों में भी अमिट छाप छोड़ी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादातर विलन की भूमिकाओं में दिखने वाली ललिता पवार ने जिस तरह अपनी कला का लोहा मनवाया।
वह काबिले तारीफ है उनका जीवन संघर्ष और सफलता की एक मिसाल है और वह एक ऐसी अभिनेत्री थी जिन्होंने अपनी मजबूती और समर्पण से यह साबित किया कि सच्ची प्रतिभा किसी भी बाधा को पार कर सकती है।
हम उनकी शुरुआती जीवन फिल्मी करियर और निजी जीवन के बारे में बात करेंगे साथ ही उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को भी आपके सामने रखेंगे तो जानने के लिए वीडियो के अंत तक बने रहे बात करें उनके शुरुआती जीवन की तो उनका जन्म 18 अप्रैल साल 1916 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में एक मराठी परिवार में हुआ था उनकी शिक्षा के बारे में कोई जानकारी नहीं है हालांकि वह फिल्मों की दुनिया में बचपन से ही आ गई थी खबरों के मुताबिक करीब 9 या 10 साल की उम्र में उन्होंने साल 1928 में आई फिल्म राजा हरिश्चंद्र में अभिनय किया था उसके बाद बड़ी होने तक उन्होंने कुछ साइलेंट फिल्मों में काम किया।

उन्होंने अपनी शुरुआती कुछ फिल्मों में लीड रोल किया और वह बतौर हीरोइन फिल्मों में काम करना चाहती थी लेकिन उनके साथ कुछ ऐसी घटना घटी जिसके बाद से उनकी पूरी जिंदगी और फिल्मी करियर ही बदल गया जिसके बारे में हम बात करेंगे फिलहाल के लिए बतौर अभिनेत्री फिल्मों में आने की उनकी कहानी को जान लेते हैं दोस्तों खबरों के मुताबिक बतौर अभिनेत्री उनकी पहली फिल्म अमृत थी जो साल 1941 में रिलीज हुई थी और यह फिल्म साइलेंट फिल्म नहीं थी इसे दो भाषाओं में रिलीज किया गया था मराठी और हिंदी जी हां इसके निर्देशक थे मास्टर विनायक इसमें दादा सालवी बाबूराव पेंढारकर ललिता पवार और मास्टर विट्ठल ये सभी लीड रोल में नजर आए।
उसके बाद उन्होंने कुछ और फिल्मों में अभिनय किया जैसे रामशास्त्री दहेज दाग और परछाईं खैर उन्होंने 1940 के दशक में कई फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाई और बतौर नायिका भी सफल रही उस समय के शीर्ष निर्देशकों के साथ काम करने वाली ललिता पंवार ने यह साबित कर दिया कि वह केवल एक अभिनेत्री नहीं बल्कि एक बहुमुखी कलाकार हैं तो अब आते हैं उस घटना पर जिसने उनकी जिंदगी में सब कुछ बदल कर रख दिया दरअसल साल 1942 में ललिता पवार के जीवन में एक बड़ा हादसा हुआ जिसने उनके पूरे करियर की दिशा बदल दी।

यह घटना एक फिल्म की शूटिंग के दौरान घटी एक सीन में अभिनेता भगवान दादा को ललिता को थप्पड़ मारना था लेकिन दुर्भाग्यवश वह थप्पड़ इतनी जोर से लगा कि उनके चेहरे की नसें डैमेज हो गई इस चोट के बाद उनके चेहरे का बाया हिस्सा पैरालिसिस से प्रभावित हो गया और उनकी आंखों पर भी इसका असर पड़ा यह हादसा ललिता पवार के लिए बहुत बड़ा धक्का था क्योंकि उस समय वह मुख्य भूमिकाओं में काम कर रही थी और उनकी सुंदरता को फिल्म इंडस्ट्री में काफी सराहा जाता था इस घटना के बाद उन्हें नायिका की भूमिकाएं मिलनी बंद हो गई लेकिन उन्होंने इस मुश्किल समय को अपने करियर का अंत नहीं बनने दिया उन्होंने अपने अभिनय कौशल को निखारा और खुद को एक नई पहचान दी।
जी हां उन्होंने अपनी छवि बदलते हुए खलनायिका की भूमिकाएं निभाना शुरू किया और इसमें उन्होंने ऐसी महारत हासिल की कि वह हिंदी सिनेमा की सबसे प्रसिद्ध खल नायिकाओं में गिनी जाने लगी खैर उन्होंने 1950 और 1960 के दशक में कई यादगार भूमिकाएं निभाई उनकी सबसे मशहूर किरदार वाली फिल्म थी श्री 420 श्री 420 में उन्होंने नरगिस और राज कपूर के साथ काम किया और अपने किरदार को इतनी बेहतरीन तरी तरीके से निभाया कि वह आज भी याद की जाती है आपको बता दें कि ललिता पवार की खलनायिका वाली भूमिकाओं में एक विशेष तरह की कड़वाहट होती थी जो उन्हें अन्य अभिनेत्रियों से अलग बनाती थी उन्होंने प्रोफेसर सेहरा गृहस्ती कोहरा फूल और पत्थर आंखें नील कमल और आज के घर जैसी कई सफल फिल्मों में शानदार भूमिकाएं निभाई साथ ही उन्होंने हर फिल्म में अपने किरदार को जीवंत बना दिया।

और अपने अभिनय से दर्शकों को खूब रोमांचित किया दोस्तों फिल्म अनाड़ी साल 1959 में आई एक क्लासिक हिंदी फिल्म थी जिसे ऋषिकेश मुखर्जी ने निर्देशित किया था इस फिल्म में ललिता पंवार ने एक सख्त और कठोर मकान मालकिन की भूमिका निभाई थी जो फिल्म का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी फिल्म की मुख्य भूमिका में राज कपूर और नूतन थे लेकिन ललिता पवार के दमदार अभिनय ने दर्शकों का ध्यान खींचा उनके किरदार के संवाद और हावभाव इस कदर प्रभावशाली थे कि उन्हें फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।
उन्होंने इस किरदार में अपनी खलनायिका वाली छवि को एक नए रूप में पेश किया जहां उन्होंने एक कठोर महिला की भूमिका निभाई उनके अभिनय को दर्शकों और आलोचकों ने खूब सराहा और इस तरह उनकी इस भूमिका ने उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार जिताया दोस्तों इतना ही नहीं फिर वही रात फिल्म में उन्होंने शानदार अभिनय का प्रदर्शन किया इसमें उन्होंने हॉस्टल वर्डन की सहायक भूमिका निभाई थी इस तरह उन्होंने 1980 और 1990 के दशक में भी कई फिल्मों में अहम भूमिकाएं निभाई ललिता पवार ने अपने फिल्मी सफर में हर तरह की किरदार निभाए चाहे वह खलनायिका हो कैरेक्टर अभिनेत्री हो या फिर किसी सख्त महिला का रोल उन्होंने हमेशा अपने अभिनय से नयापन बनाए रखा।
आगे चलकर अन्य कई फिल्मों में अभिनय किया जैसे कि नसीब घर संसार जलजला और मुस्कुराहट ललिता पवार की करियर की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं में से एक थी साल 1987 में आई रामानंद सागर की रामायण टीवी सीरियल में मंथरा का किरदार मंथरा का किरदार बहुत ही अहम और नकारात्मक था जिसने भगवान राम के वनवास का बीज पोया ललिता पवार ने मंथरा का किरदार इस तरह से निभाया कि वह भारतीय टेलीविजन पर एक अमर भूमिका बन गई मंथरा के रूप में उनका अभिनय इतना सशक्त था कि लोग उन्हें इस किरदार के लिए ही पहचानने लगे।

उनकी आवाज हावभाव और संवाद अदायगी ने इस किरदार को यूनिक बना दिया रामायण की सफलता के बाद ललिता पवार का नाम हर घर में जाना जाने लगा और उन्होंने यह साबित कर दिया कि वह ना केवल फिल्मी पर्दे की महारानी है बल्कि छोटे पर्दे पर भी उनका दबदबा है उनकी आखिरी फिल्म के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है क्योंकि उन्होंने अपने लंबे करियर में कुल 700 हिंदी मराठी और गुजराती फिल्मों में अभिनय किया था लेकिन एक अनुमान के मुताबिक उनकी आखिरी फिल्म साल 1998 में आई थी जिसका शीर्षक था लाश ये एक हॉरर फिल्म थी जिसमें उन्होंने सहायक भूमिका निभाई थी वेल इतना लंबा करियर और इतनी फिल्मों में काम कर पाना लगभग मुश्किल लगता है लेकिन उन्होंने ऐसा करके खुद को साबित कर दिया कि वह ऐसा कर सकती हैं वैसे किसी भी कलाकार के लिए इससे बड़ा अचीवमेंट हो ही नहीं सकता बात करें उनके निजी जीवन की तो वह शादीशुदा थी हालांकि उनकी शादीशुदा जिंदगी में काफी उतार चढ़ाव आए।

उनका विवाह गणपतराव पवार से हुआ था लेकिन यह शादी ज्यादा समय तक नहीं चली और बाद में उनका तलाक हो गया इसके बाद उन्होंने फिल्म निर्माता राज प्रकाश गुप्ता से विवाह किया जिनसे उन्हें एक बेटा हुआ वेल अपने व्यक्तिगत जीवन में आई मुश्किलों के बावजूद ललिता पंवार ने अपने करियर पर इसका असर नहीं पड़ने दिया और हमेशा अपने काम को प्राथमिकता दी उनकी निजी जिंदगी के संघर्षों ने उन्हें और भी मजबूत बना दिया और और उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से एक सशक्त अभिनेत्री के रूप में खुद को स्थापित किया फिल्मों में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है उन्होंने जिस तरह से खलनायिका की भूमिकाओं को निभाया वह उन्हें बाकी अभिनेत्रियों से अलग बनाता है खैर 24 फरवरी साल 1998 को ललिता पवार का निधन हो गया उनके निधन के साथ ही भारतीय सिनेमा ने एक महान कलाकार खो दिया।
हालांकि उनके द्वारा निभाए गए किरदार और उनकी अदाकारी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है ललिता पवार ने जिस तरह से अपने करियर में चुनौतियों का सामना किया और अपने अभिनय से एक नई पहचान बनाई वह नई पीढ़ी के कलाकारों के लिए प्रेरणा स्रोत है उनकी अदाकारी का जादू आज भी उनके चाहने वालों के दिलों में जिंदा है और उनका योगदान सदा याद रखा जाएगा इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में ललिता पंवार का नाम हमेशा स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।