पूरी प्रॉपर्टी खत्म कर दो.. ताज और बदमाशो को लेकर क्या बोले थे रतन टाटा।

एंड ऑफ एन एरा 9 अक्टूबर 2024 को देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा ने दुनिया को अलविदा कह दिया 3 दिन पहले मीडिया में उनके बीमार होने की खबर आई थी हालांकि उन्होंने एक पोस्ट में कहा था कि वह ठीक है और चिंता की कोई बात नहीं है लेकिन 9 अक्टूबर की रात खबर आई रतन टाटा नहीं रहे रतन टाटा तो चले गए लेकिन अपने पीछे छोड़ गए।

कई प्रेरणादायक किस्से कई कहानियां ऐसा ही एक किस्सा साल 2008 का है जब 2611 को ताज होटल पर हुए हमले की के बीच वो ताज होटल पहुंच गए थे आज की स्टोरी में इस पूरे किस्से को जानेंगे शुरुआत ताज होटल की स्थापना से करते हैं कहानी शुरू होती है।

सपनों की नगरी मुंबई से वहां के काला घोड़ा इलाके में एक नामी होटल था नाम था वाटसंस होटल टाटा ग्रुप के संस्थापक और रतन टाटा के दादाजी जमशेद जी टाटा वाटसन होटल पहुंचे ये एक ऐसा होटल था जहां सिर्फ यूरोप के लोगों को एंट्री मिलती थी इसी वजह से जब जमशेद जी वहां पहुंचे तो यूरोपियन ना होने की वजह से उन्हें होटल में एंट्री नहीं मिली यह बात उनके दिल में घर घर गई घटना के कुछ वक्त बाद साल 188 में जमशेद जी ने अचानक ऐलान किया कि वह मुंबई में एक भव्य होटल बनाने जा रहे हैं इस वक्त तक टाटा ग्रुप देश के बड़े कपड़ा व्यापारियों में शामिल हो चुका था।

इसलिए इस ऐलान ने देश भर को हैरान कर दिया होटल के लिए दुनिया भर से खरीदारी शुरू हुई लंदन से लेकर बर्लिन तक के बाजार खंगाले गए आखिरकार करीब 14 साल बाद साल 1903 में यह होटल बनकर त तैयार हो गया नाम रखा ताज होटल देखते ही देखते ताज होटल देश के सबसे भव्य होटल्स में से एक हो गया करीब 50 साल तक टाटा ग्रुप का नेतृत्व करने के बाद जमशेद जी टाटा ने पोते रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी चुना धीरे-धीरे रतन टाटा ने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर ताज होटल को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाया देश विदेश में ताज होटल सबकी नजरों में आ गया लेकिन इस बीच की नजर भी ताज होटल पर पड़ गई।

साल था 2008 दिन 26 नवंबर 10 आतंकवादियों ने ता आज होटल समेत मुंबई के कई इलाकों को निशाना बनाया रतन टाटा अपने एक इंटरव्यू में इस घटना को याद करते हैं वह बताते हैं वाले दिन उन्हें किसी का कॉल आया उसने फोन पर बताया कि ताज होटल में गोलीबारी हो रही है यह सुनकर रतन टाटा ने तुरंत अपने स्टाफ को कॉल की लेकिन फोन नहीं उठा।

रतन टाटा ने बताया कि आमतौर पर ऐसा नहीं होता था कि मेरा फोन ना उठाए मुझे स्टाफ की फिक्र होने लगी मैंने तुरंत कार निकाली और ताज पहुंच गया लेकिन वॉचमैन ने मुझे अंदर जाने नहीं दिया क्योंकि होटल में एक हो रही थी रतन ने आगे इंटरव्यू में यह भी कहा हमले के वक्त 300 गेस्ट होटल में मौजूद थे होटल के स्टाफ ने उन्हें सुरक्षित निकालने की पूरी कोशिश की इस दौरान कई लोगों की भी हो गई।

रतन टाटा ताज होटल को अपनी विरासत के तौर पर देखते थे उनके दादाजी का बनाया यह होटल उनके दिल के बेहद करीब था लेकिन हमले के वक्त जब आतंकवादी होटल में छिपे हुए थे तब रतन टाटा ने वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों से कहा कि अगर जरूरत पड़े तो मेरी पूरी प्रॉपर्टी बम से उड़ा दो लेकिन बेकसूर की जान लेने वाले एक भी आतंकवादी को जिंदा नहीं छोड़ना पूरे ती तीन दिन तीन रात तक खुद अपनी जान जोखिम में डालकर रतन टाटा होटल के कर्मचारियों के साथ खड़े रहे।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने हमले में मारे का अपने कर्मचारियों के परिवार को ₹ लाख से लेकर 85 लाख तक की मदद की चाहे वह कर्मचारी किसी भी पद का क्यों ना रहा हो उन्होंने सुनिश्चित किया कि हर और हर शहीद कर्मचारी के परिवार को उचित मुआवजा मिले इसके अलावा टाटा ग्रुप ने यह भी सुनिश्चित किया कि कर्मचारियों के बच्चों को अच्छी से अच्छी एजुकेशन मिलनी चाहिए उन्होंने उन सभी लोगों की मदद की जो ताज होटल के आसपास क्षेत्र में काम करते थे।

जैसे कि सड़क पर चाय बेचने वाले फेरी वाले और टैक्सी चालक जिन्हें इस हमले से काफी नुकसान हुआ था रतन टाटा ने उस वक्त ना केवल आर्थिक मदद की बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी उन लोगों के साथ खड़े रहे उन्होंने इन परिवारों के साथ समय बिताया और उन्हें यह महसूस कराया कि वे अकेले नहीं है इस घटना के बाद आज होटल को फिर से उसी गौरव के साथ खड़ा किया गया इस घटना ने ना केवल रतन टाटा की प्रतिष्ठा को और ऊंचाई दी बल्कि यह भी साबित किया कि व्यवसाय से अधिक महत्त्वपूर्ण मानवता है रतन टाटा की मानवता के किस्से कई पीढ़ियों तक याद किए जाए।

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