रोल न पसंद आने पर सेट से भागे दिलीप कुमार, डायरेक्टर ने खुद किया फिल्म में लीड रोल।

दिलीप कुमार को हिंदी सिनेमा का पहला सुपरस्टार कहा जाता है वह एक टाइम में सिर्फ एक फिल्म करते थे और उसे अपना 100% दिया करते थे दिलीप कुमार ने अपने करियर में कई फिल्मों को ठुकराया है एक बार तो उन्होंने फिल्म साइन कर ली थी लेकिन वह शूटिंग पर नहीं पहुंचे जिसके बाद नाराज फिल्म मेकर ने एक ऐसा फैसला लिया जिससे 68 साल पहले मूवी ने ना सिर्फ करोड़ों की कमाई की बल्कि कल्ट क्लासिक भी साबित हुई.

मनोरंजन जिन की दुनिया में फिल्मों को साइन करने के दौरान कई बार कलाकारों का ईगो सामने आ जाता है इस कारण वो ऐसी फिल्मों को ठुकरा देते हैं जो बाद में ब्लॉकबस्टर साबित होती है ऐसा ही कुछ एक बार दिलीप कुमार के साथ हुआ था उन्होंने गुरुदत्त की एक फिल्म को फीस की वजह से रिजेक्ट कर दिया था इसके बाद गुरुदत्त और उनके बीच कोल्ड वॉर हो गई थी गुरुदत्त 23 फरवरी 1957 को फिल्म प्यासा लेकर आए थे फिल्म को अबरार अलवी ने लिखा था और फिल्म में वहीदा रहमान माला सिन्हा जॉनी वॉकर और रहमान अहम भूमिका में थे इस फिल्म में गुरुदत्त ने शुरुआत में अपने पर कुछ रील्स शूट की थी लेकिन जब उन्होंने स्क्रीन पर देखा तो उन्हें लगा कि वह कभी विजय के किरदार के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं ऐसे में इस ट्रैजिक रोल के लिए वह ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार के पास गए.

दिलीप कुमार ने जब फिल्म की कहानी सुनी तो उन्हें पसंद आई और उन्होंने फिल्म के लिए हामी भरती दिलीप साहब ने अपनी फीस ₹ लाख बताई इस पर गुरुदत्त ने कहा कि चूंकि मैं फिल्म की कुछ रील्स पर रुपए खर्च कर चुका हूं तो प्लीज आप कुछ फीस कम कर दीजिए दिलीप साहब ने कहा एक काम करिए आप फिल्म बनाकर दे दीजिए उसे डिस्ट्रीब्यूटर लूंगा उससे आपका खर्चा बच जाएगा यह बात गुरु दत्त को पसंद नहीं आई और उन्होंने कहा मैं आपके पास फिल्म बेचने नहीं आया हूं मैं चाहता हूं कि आप सिर्फ एक्टर के तौर पर फिल्म करें बस यह बात दिलीप साहब को अच्छी नहीं लगी.

लेकिन उस वक्त उन्होंने कुछ नहीं कहा तय दिन के मुताबिक जब फिल्म का महूरत शॉर्ट होने वाला था तो सभी सुबह से दिलीप साहब के इंतजार में बैठे थे लेकिन काफी देर बाद भी जब वह नहीं आए तो गुरुदत्त ने प्रोडक्शन कंट्रोलर गुरुस्वामी को दिलीप कुमार के घर भेजा वहां जाकर पता चला कि वह शूटिंग लोकेशन के पास ही बीआर चोपड़ा के कार्यालय में नया दौर की स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं ऐसे में वहां गुरुदत्त के असिस्टेंट उन्हें बुलाने गए तब दिलीप साहब ने कहा मैं 10 मिनट में आता हूं गुरु दत्त ने अपने यूनिट से कहा हम 10 मिनट इंतजार कर लेते हैं.

लेकिन उन्हें क्या पता था कि दलब साहब आएंगे ही नहीं गुरुदत्त को यह बात बुरी लगी और उन्होंने खुद ही फिल्म में काम करने का मन बनाया उसी जगह पर गुरुदत्त ने महूरत शॉट दिया फिल्म प्यासा अपने दौर की क्लासिक हिट साबित हुई और फिल्म का वो सीन जहां भवरे को पैर से दबाकर मार दिया जाता है खुद गुरु दत्त ने शूट किया आखिरकार उनकी पत्नी गीता दत्त की इा पूरी हुई और गुरुदत्त ने प्यासा में लीड रोल प्ले किया दिलीप कुमार ने बाद के दिनों में एक इंटरव्यू में कहा था प्यासा का वह किरदार उनके देवदास के किरदार से मिलता जुलता था इसलिए उन्होंने वह फिल्म नहीं की थी.

हालांकि इंडियन एक्सप्रेस के एक रिपोर्ट के मुताबिक स्क्रीन राइटर सलीप ने एक चैट शो में कहा था कि मैंने दिलीप साहब से पूछा कि किन फिल्मों को रिजेक्ट करने का उनको मलाल है तब उन्होंने कहा था तीन फिल्में बैजू बावरा जंजीर और प्यास सा गुरुदत्त ने बड़ी संजीदगी से फिल्म में हीरो के किरदार को पर्दे पर उतारा था साल 1957 में रिलीज होने के बाद प्यासा बॉक्स ऑफिस पर छा गई थी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्यासा ने करोड़ का बिजनेस किया था जो उस दौर में बहुत ज्यादा था यह उस साल की हाईएस्ट ग्रो सिंग फिल्म साबित हुई थी.

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